सनातन धर्म के शास्त्रों में संसार की रचना का रहस्य बहुत गूढ़ और गहरा बताया गया है। वेद, पुराण, उपनिषद और महाकाव्य हमें इस सृष्टि के आरंभ के बारे में विस्तार से बताते हैं। यह प्रश्न कि “इस ब्रह्मांड को किसने बनाया?” मानव सभ्यता की सबसे पुरानी जिज्ञासाओं में से एक रहा है। हिंदू धर्म में यह विश्वास किया जाता है कि माँ भगवती (आदि शक्ति) ही इस सृष्टि की मूल शक्ति हैं और उनकी ही शक्ति से यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड प्रकट हुआ है। देवी भागवत महापुराण, शिवपुराण, विष्णुपुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि माँ भगवती ही परब्रह्म की मूल शक्ति हैं और उनके बिना कुछ भी संभव नहीं है।
श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में वर्णन आता है कि जब कुछ भी नहीं था, जब यह ब्रह्मांड अस्तित्व में नहीं था, तब केवल पराशक्ति (आदि शक्ति) ही अस्तित्व में थीं। न कोई आकाश था, न पृथ्वी, न जल और न अग्नि, केवल एक असीम शक्ति थी, जिसे हम माँ भगवती, महामाया या आद्या शक्ति के रूप में जानते हैं। वही शक्ति इस सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी हैं और उनके बिना न ब्रह्मा उत्पन्न हो सकते हैं, न विष्णु और न ही महेश।
अब प्रश्न यह उठता है कि माँ भगवती की उत्पत्ति कैसे हुई? क्या वे स्वयं भी किसी के द्वारा रची गई थीं, या वे स्वयं अनादि और सनातन हैं? इस रहस्य को समझने के लिए हमें वेदों और पुराणों में वर्णित सृष्टि के आरंभ की ओर जाना होगा।
🔱 माँ भगवती की उत्पत्ति: आदि शक्ति का प्राकट्य

🔹 जब कुछ भी नहीं था, तब भी माँ भगवती थीं
देवी भागवत महापुराण में कहा गया है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, जब न दिन था, न रात, न आकाश था, न जल, तब केवल माँ भगवती ही नित्य स्वरूप में थीं। वे अव्यक्त, निर्गुण और परम चेतना स्वरूप थीं। उन्हें ही आदि शक्ति, महाकाली, महासरस्वती और महालक्ष्मी के रूप में जाना जाता है।
भगवती स्वयं कहती हैं –
“अहमेव जगत्सर्वं, मूर्तिमत्यप्यसंशयम्।
मया विनागतं किंचिन्नास्ति सत्यं वचो मम॥”
(देवी गीता 1.16)
अर्थात, “मैं ही संपूर्ण ब्रह्मांड हूँ। मुझसे अलग कुछ भी नहीं है।”
इसका अर्थ यह हुआ कि माँ भगवती स्वयं अनादि, अजन्मा और सनातन हैं। उनका कोई जन्म नहीं हुआ, वे स्वयं इस सृष्टि की सृजनकर्ता हैं।
🔹 माँ भगवती की शक्ति से त्रिदेव की उत्पत्ति
पुराणों में वर्णन आता है कि जब माँ भगवती ने इच्छा की, तब उनकी शक्ति से सबसे पहले त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई।
- भगवान विष्णु को संरक्षण का कार्य सौंपा गया।
- भगवान ब्रह्मा को सृष्टि निर्माण का कार्य दिया गया।
- भगवान शिव को संहार का दायित्व सौंपा गया।
लेकिन यह त्रिदेव स्वयं कुछ भी नहीं कर सकते थे, जब तक कि माँ भगवती ने उन्हें अपनी शक्ति प्रदान नहीं की। देवी महात्म्य में कहा गया है कि त्रिदेव माँ भगवती की शक्ति से ही अपनी जिम्मेदारियाँ निभा पाते हैं।
🔱 ब्रह्मांड की रचना कैसे हुई?

🔹 प्रथम सृष्टि: ब्रह्मा की तपस्या
जब ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का कार्य सौंपा गया, तब वे ध्यानमग्न हो गए और तपस्या करने लगे। वेदों के अनुसार, उनकी तपस्या से परम शक्ति प्रकट हुई, जिसे “महामाया” कहा गया।
महामाया ही प्रकृति हैं, जिनसे पाँच तत्त्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) उत्पन्न हुए और फिर सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रचना हुई। ब्रह्मा जी ने महामाया की स्तुति करते हुए कहा –
“त्वं स्वाहा त्वं स्वधा देवी, त्वमसि विश्वधारिणी।
त्वमाद्या प्रकृतिः शुभ्रा, निराकाराऽऽदिभाविनी॥”
अर्थात, “हे देवी, तुम ही सम्पूर्ण विश्व की धारक हो, तुम ही आदि शक्ति हो, तुम ही यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड हो।”
इसके पश्चात माँ भगवती की कृपा से ब्रह्मा जी ने विविध लोकों, देवताओं, मनुष्यों, असुरों और संपूर्ण जीवों की सृष्टि की।
🔹 योगमाया का कार्य: श्रीकृष्ण और ब्रह्मांड की रचना
श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण के योगमाया स्वरूप का भी उल्लेख आता है। जब भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया, तब उनकी रक्षा के लिए योगमाया स्वयं उत्पन्न हुईं। योगमाया ही माँ दुर्गा, माँ काली और माँ लक्ष्मी के रूप में जानी जाती हैं।
महाभारत में जब अर्जुन ने श्रीकृष्ण से पूछा कि “यह सम्पूर्ण सृष्टि कैसे चल रही है?”, तब श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया –
“मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः॥”
(भगवद गीता 9.4)
अर्थात, “यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड मेरी ही शक्ति से व्याप्त है, सभी प्राणी मुझमें स्थित हैं, लेकिन मैं उनमें स्थित नहीं हूँ।”
इससे स्पष्ट होता है कि माँ भगवती और श्रीकृष्ण एक ही ब्रह्म शक्ति के दो रूप हैं।
मनुष्य की उत्पत्ति कैसे हुई? 84 लाख योनियों का रहस्य और संपूर्ण विवरण 🔱

हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि इस सृष्टि की रचना ईश्वर की इच्छा से हुई और प्रत्येक जीव को कर्मों के आधार पर अलग-अलग योनियों में जन्म लेना पड़ता है। इस ब्रह्मांड में 84 लाख योनियाँ (जीव रूप) मानी गई हैं, जिनमें से किसी भी योनि में जन्म लेना जीव के पूर्व जन्म के कर्मों पर निर्भर करता है। मनुष्य योनि को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि इसमें ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग खुलता है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि मनुष्य की उत्पत्ति कैसे हुई? जीव 84 लाख योनियों में क्यों भटकते हैं? और मनुष्य जीवन का उद्देश्य क्या है?
इसका उत्तर हमें वेदों, पुराणों और उपनिषदों में मिलता है। इस लेख में हम मनुष्य की उत्पत्ति और 84 लाख योनियों के रहस्य को विस्तार से समझेंगे।
🔱 सृष्टि की उत्पत्ति: पंचतत्वों से जीवन की शुरुआत
🔹 जब कुछ भी नहीं था…
सनातन शास्त्रों के अनुसार, जब यह सृष्टि नहीं थी, जब न आकाश था, न जल, न पृथ्वी, तब केवल परम तत्व (परब्रह्म) और उनकी शक्ति (आदि शक्ति) ही अस्तित्व में थे। माँ भगवती (महामाया) की शक्ति से परमेश्वर ने इस सृष्टि की रचना करने की इच्छा प्रकट की और तब सबसे पहले पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) का प्राकट्य हुआ।
भगवद गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं –
“अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्॥”
(भगवद गीता 7.5)
अर्थात, “यह जो स्थूल प्रकृति है, यह मेरी अपरा (निम्नतर) प्रकृति है, लेकिन इससे भिन्न मेरी परा (श्रेष्ठ) प्रकृति भी है, जो सभी जीवों का आधार है।”
यानी, इस सृष्टि में जो भी कुछ अस्तित्व में है, वह परमात्मा की शक्ति से ही प्रकट हुआ है।
🔹 सृष्टि में जीवन की उत्पत्ति
पुराणों में बताया गया है कि जब पंचतत्वों का निर्माण हुआ, तब भगवान विष्णु ने जल में शयन किया और उनके नाभि से एक कमल प्रकट हुआ, जिसमें ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए। ब्रह्मा जी ने अपनी शक्ति से सृष्टि की रचना करनी शुरू की। सबसे पहले उन्होंने चार कुमारों (सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार) को उत्पन्न किया, लेकिन वे सांसारिक सृष्टि में रुचि नहीं रखते थे।
तब ब्रह्मा जी ने अपनी शक्ति से अन्य जीवों को उत्पन्न करना आरंभ किया। शास्त्रों के अनुसार, जीवों की उत्पत्ति नौ प्रकार से हुई थी –
- स्वेदज (पसीने से उत्पन्न) – कीड़े-मकोड़े, जूँ आदि
- अंडज (अंडे से उत्पन्न) – पक्षी, सरीसृप आदि
- जरायुज (गर्भ से उत्पन्न) – मनुष्य, गाय, सिंह आदि
- उद्भिज्ज (भूमि से उत्पन्न) – वृक्ष, पौधे आदि
- आदिकृत सृष्टि – चार सनतकुमार आदि
- तिर्यंच सृष्टि – पशु-पक्षी आदि
- उत्सर्ग सृष्टि – मनुष्य और अन्य प्राणी
- अंश सृष्टि – देवता, असुर और अन्य जीव
- मनुष्य सृष्टि – विशेष रूप से कर्म करने और मोक्ष प्राप्ति के लिए
🔹 मनुष्य की उत्पत्ति कैसे हुई?
भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना करने के लिए मनु और शतरूपा का सृजन किया। मनु से ही मानव जाति की उत्पत्ति हुई। इसलिए मनुष्य को “मानव” कहा जाता है।
श्रीमद्भागवत पुराण में आता है –
“मनुर्भूत्वा स तां सृष्टिं, प्रजानां पतिराविशत्।”
(श्रीमद्भागवत 3.12.54)
अर्थात, “मनु के द्वारा ही इस सृष्टि की रचना हुई और वे ही समस्त प्राणियों के मूल स्त्रोत हैं।”
मनु और शतरूपा के पुत्र-पुत्रियों से ही संपूर्ण मानव जाति की उत्पत्ति हुई। मनु के वंशजों में अनेक महान ऋषि, राजा और योद्धा उत्पन्न हुए।
🔱 84 लाख योनियों का रहस्य
🔹 84 लाख योनियाँ कैसे बनीं?
सनातन धर्म में यह मान्यता है कि इस संसार में कुल 84 लाख योनियाँ हैं, जिनमें सभी जीव जन्म लेते हैं और कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म होता है।
शास्त्रों में 84 लाख योनियों का विवरण इस प्रकार है –
- 30 लाख योनियाँ जलचर (मछलियाँ, मगरमच्छ आदि) की हैं।
- 27 लाख योनियाँ पशुओं की हैं।
- 14 लाख योनियाँ कीट-पतंगों और रेंगने वाले जीवों की हैं।
- 10 लाख योनियाँ पक्षियों की हैं।
- 4 लाख योनियाँ मनुष्यों और देवताओं की हैं।
🔹 जीव 84 लाख योनियों में क्यों भटकता है?
गर्भोपनिषद् में कहा गया है कि एक जीव को 84 लाख योनियों में घूमकर मनुष्य योनि प्राप्त होती है। यह सब जीव के कर्मों पर निर्भर करता है। अगर कोई जीव अच्छे कर्म करता है, तो उसे मनुष्य या देवता की योनि मिलती है। लेकिन अगर वह पाप कर्म करता है, तो उसे नीच योनियों (कीड़े-मकोड़े, पशु आदि) में जन्म लेना पड़ता है।
भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने कहा –
“ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था, मध्ये तिष्ठन्ति राजसाः।
जघन्यगुणवृत्तिस्था, अधो गच्छन्ति तामसाः॥”
(भगवद गीता 14.18)
अर्थात, “सात्त्विक कर्म करने वाले उच्च लोकों में जाते हैं, राजसिक कर्म करने वाले मनुष्य योनि में रहते हैं और तामसिक कर्म करने वाले निम्न योनियों में जन्म लेते हैं।”
🔱 निष्कर्ष: संसार की रचना और माँ भगवती की शक्ति
- माँ भगवती ही इस सृष्टि की मूल शक्ति हैं।
- उनकी शक्ति से ही त्रिदेव की उत्पत्ति हुई और उन्होंने सृष्टि की रचना की।
- त्रिदेव बिना माँ भगवती की शक्ति के कुछ भी करने में असमर्थ हैं।
- भगवद गीता और देवी गीता, दोनों ही इस सत्य की पुष्टि करते हैं कि यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड एक ही परब्रह्म से उत्पन्न हुआ है।
- श्रीकृष्ण और माँ भगवती एक ही शक्ति के दो स्वरूप हैं।
इसलिए, यह कहना उचित होगा कि माँ भगवती ही इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड की मूल शक्ति हैं और उन्हीं से सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति हुई है।
🚩 जय माँ भगवती! जय श्रीकृष्ण! 🙏
सबसे अधिक खोजे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
👉 हिंदू धर्म के अनुसार, मनु और शतरूपा से ही मनुष्य जाति की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी ने इन्हें सृष्टि के आरंभ में उत्पन्न किया, और इनके वंशजों से ही संपूर्ण मानव जाति का विस्तार हुआ।
👉 शास्त्रों के अनुसार, इस संसार में 84 लाख योनियाँ हैं, जिनमें सभी जीव जन्म लेते हैं। इनमें पशु, पक्षी, कीड़े-मकोड़े, जलचर, देवता, असुर और मनुष्य शामिल हैं।
👉 जीव को अपने कर्मों के अनुसार पुनर्जन्म लेना पड़ता है। यदि अच्छे कर्म किए तो मनुष्य या देवता की योनि प्राप्त होती है, और यदि पाप कर्म किए तो नीच योनियों (कीड़े, पशु, राक्षस आदि) में जन्म लेना पड़ता है।
👉 मनुष्य योनि सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है क्योंकि केवल मनुष्य ही अपने कर्मों के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर सकता है और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो सकता है।
👉 नहीं, यदि कोई मनुष्य सत्कर्म करता है तो वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है, लेकिन अगर वह अधर्म और पाप कर्म करता है तो उसे फिर से 84 लाख योनियों में भटकना पड़ता है।
👉 हत्या, चोरी, छल-कपट, दूसरों को कष्ट देना, नशा, अधर्म और अपवित्र आचरण करने वाले लोग पशु, कीड़े-मकोड़े, राक्षस आदि की योनियों में जन्म लेते हैं।
👉 मनुष्य को सत्कर्म, भक्ति, ध्यान और धर्म के अनुसार जीवन जीना चाहिए ताकि वह मोक्ष प्राप्त कर सके और पुनः जन्म-मरण के चक्र में न फंसे।
👉 हां, लेकिन यह बहुत कठिन है। 84 लाख योनियों में भटकने के बाद अत्यंत पुण्य अर्जित करने पर ही मनुष्य योनि प्राप्त होती है।
👉 हां, भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि जीव अपने कर्मों के अनुसार ऊंची या नीची योनियों में जन्म लेता है।
🚩 मनुष्य योनि का सदुपयोग करें और मोक्ष प्राप्त करें! 🙏